प्रिय मित्रों प्रश्न ? उत्तर भाग - ४ की पोस्ट पे आपका एकबार फिरसे स्वागत है , जैसा कि आप जानते है मैंने अपनी पिछली पोस्ट पे आपको शगुन अपशगुन के बारे में जानकारी दी थी , पोस्ट देखने के लिए यहाँ पे क्लिक करें , हमारी आज की पोस्ट इससे कुछ हदतक थोड़ी सी अलग है , तो चलिए अब बात करते है आज की पोस्ट यानी प्रश्न की !
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प्रश्न -- चेचक एक भयंकर रोग हैं , फिर इसे हम शीतला माता क्यों कहते हैं ?
उत्तर -- चेचक के उपचार हेतु वैज्ञानिक एवं डाक्टरों ने बहुत बल लगा दिया। इनके कथानुसार चेचक एक विषाणुजनित ( VIRUS ) रोग हैं। इसका प्रसार केवल मनुष्यों में होता है ,इसके लिए दो विषाणु उत्तरदायी माने जाते है वायरोला मेजर और वायरोला माइनर , यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन के एक दल को पता चला कि चेचक उन क्षेत्रों में कम पाया जाता है जहाँ पराबैंगनी किरणों का स्तर ऊँचा होता है. सूरज की रोशनी में चमड़े पर विषाणुओं की सक्रियता कम हो जाती है और इस तरह उनके फैलने पर रोक लगती है. मगर दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि अन्य कारक जैसे तापमान, आर्द्रता और यहाँ तक कि घरेलू परिस्थितियाँ भी इसमें अहमभूमिका अदा करती हैं. आम तौर पर किसी को भी एक बार ही चेचक होता है। आम तौर पर छोटे बच्चों पर चेचक का ज़्यादा बुरा असर नहीं होता। लेकिन बड़ों को अगर चेचक हो जाए तो ये गंभीर रूप ले सकता है। इसका इलाज औषधियों से हो सकता है किन्तु वे पूर्णतः सफल नहीं हुए , क्योंकि जिस प्रकार कपड़ों में लगा मैल को साबुन धो तो डालता है किन्तु काई को नहीं छुडा़ पाता , किन्तु यदि कोई तेजाब से कपड़े की काई को निकालने का प्रयास करता है तो परिणाम स्वरूप कपड़ा ही नष्ट हो जाता है , उसी प्रकार कोई डॉक्टर दवाओं द्वारा चेचक के रोगी का इलाज करता है तो वह रोगी के जीवन के साथ मजाक करता है। चेचक का रोग शरीर के अन्दरूनी भाग से पूरे शरीर पर एक साथ प्रकट होता है।
ब्राह्मी , माहेश्वरी , कौमारी , वैष्णवी , वाराही , इन्द्राणीं एवं चामुण्डा ये सात माताएँ हैं। इनमें चामुण्डा का स्वरूप सबसे घातक होता है। सात स्टेज वाले इस रोग में प्रथम स्टेज की देवी ब्राह्मी हैं। इस रोग में चौथी स्टेज तक कोई ख़तरा नहीं रहता अर्थात वैष्णवी तक जातक के प्राण जाने का भय नहीं होता , किन्तु उसके बाद जीवन ख़तरे में पड़ जाता हैं। कौमारी में एकबार विस्फोट होता है जो कि नाभि तक दिखाई देता है। वाराही का आक्रमण मन्द गति से होता है अतः इसे ' मन्थज्वर ' भी कहते है तथा चामुण्डा के आक्रमण से रोगी की दुर्गति हो जाती है। जीभ , आँख , नाक , मुँह आदि पर पूरा प्रकोप होता हैं। चामुण्डा से आक्रांत रोगी शव ( लाश ) के समान हो जाता है।
गधे पर सवार , हांथ में झाड़ू लिए हुए , श्री शीतला माता
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तो मित्रों इसी के साथ विदा कीजिए , मिलते है अगली पोस्ट पे , धन्यवाद !!!
मित्रों ये जानकारी आपको कैसी लगी , अपनी टिप्पणी ज़रूर दें !
bahut acchi
जवाब देंहटाएंब्रदर धन्यवाद व स्वागत हैं !
हटाएंबहुत सटीक और सुन्दर विश्लेषण ....आभार
जवाब देंहटाएंसंजय भाई धन्यवाद व स्वागत हैं !
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