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रविवार, 13 अक्तूबर 2013

श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन ?


श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन कहीं छांव कहीं धूप
 
फूल एक से , ख़िलन भी एक , लेकिन अनेकों रंगोरूप

श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन कहीं छांव कहीं धूप

बागीचा भी एक , माली भी एक , और तो और  उद्देश्य भी एक , लेकिन अनेकों रंगोरूप
श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन कहीं छांव कहीं धूप



माटी भी एक , डोलन भी एक , लेकिन ख़ुशबुओं के अनेकों रूप
श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन कहीं छांव कहीं धूप


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अर्थ -- ( श्री राम तेरे कितने रूप ) ईश्वर एक है ये तो सब जानते हैं , चाहे राम कहो , रहीम ( अल्लाह ) , ईसा , नानक जी , या साँईं , हम सबमें उसी का ही अंश है , ( लेकिन कहीं छांव कहीं धूप ) ये इसलिये कहा गया है , क्योंकि सूर्य ( सूरज ) को ईश्वर का रूप भी माना गया है , जैसे जब सूर्य भारत में निकलता है तो अमेरिका में रात हो जाती है , और जब अमेरिका में निकलता है तो भारत में रात हो जाती है , लेकिन ज्योति उसी एक की होती है ( फूल एक से ) अर्थात , हम सब एक से यानी की एक जैसा बोलचाल , रहन सहन , ख़ान पान ( ख़िलन भी एक ) यानी आवागमन , एक जैसे पैदा होते है तथा एक जैसे मरते भी हैं ( लेकिन अनेकों रंगोंरूप ) ये इसलिये कहा गया है , क्योंकि कोई गोरा कोई काला , कोई लम्बा कोई छोटा , कोई डॉक्टर कोई इन्जीनियर , ( बागीचा भी एक ) अर्थात जिस जगह हम रहते है हमारी पृथ्वी माँ ( माली भी एक ) यानी हमारे माता पिता ( और तो और उद्देश्य भी एक ) ये इसलिये कहा गया है , क्योंकि हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि हम जो भी हैं , जैसे भी हैं , एक दूसरे की मदद करना व काम आना हमारा प्रथम उद्देश्य है , ( माटी भी एक ) यानी की रंग रूप चाहे कुछ भी हो , हैं हम हड्डी मांस का पुतला ही , ( डोलन भी एक ) ये इसलिये कहा गया है , क्योंकि जैसे एक हवा के झोकें से बागीचे में लगे समस्त पुष्प ( फूल ) डोलने लगते हैं , उसी तरह हम मनुष्य उस ईश्वर की शक्ति से अपने अपने कार्य में बड़े प्रेम से लगे रहते है , जिसका अनुभव हमें जीवन में कभी न कभी हो ही जाता है ( लेकिन ख़ुशबुओं के अनेकों रूप ) अर्थात हम सब एकजैसे होते हुए भी अनेक श्रेणियों में हैं जैसे कि हिंदू , मुस्लिम , सिक्ख , ईसाई , बौद्ध आदि

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भाव हैं ......उद्देश्य भी सार्थक है.....
    --------.परन्तु साथ ही साथ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम सब एक नहीं हैं ( यह बात बहु कथित सामान्य से हटकर लग सकती है-परन्तु विचारणीय है )..अपितु अच्छे-बुरे इंसान भिन्न भिन्न होते हैं.....यदि सब एक ही होते हैं तो क्यों कोई विद्वान बनने हेतु तप, त्याग, कठोर श्रम आदि करने का प्रयत्न करेगा ...विश्व में सारी प्रगति ही रुक जायगी | राम के यदि अनेक रूप हैं तो रावण के भी अनेक रूप हैं.....बस हमें इतना ध्यान रखना है कि हमें राम के रूपों की आराधना करनी है रावण की नहीं..... राम की महिमा गायन का यही अर्थ है .....

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    1. आदरणीय श्याम सर , आपकी बात से मै सहमत हूँ , मैंने भी इसी बात को सामने रख कर इस पोस्ट का नाम श्री राम तेरे कितने रूप लेकिन कहीं छाँव कही धुप रखा , इस बात को आप इस तरह समझ सकते है कि , जिस प्रकार एक सूर्य के होते हुए भी कहीं छाव कहीं धुप हो सकती है , उसी प्रकार इश्वर एक होते हुए भी उसके रूप तरह तरह के हो सकते है , और रही श्री राम के रूप की बात तो हमने अर्थ के जरिये ये बात साफ़ कर दी है इश्वर केवल एक है , सर कृपया एक बार सही से अर्थ पे ध्यान दे , धन्यवाद

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  2. सुन्दर एवं सार्थक रचना |
    आशा

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  3. हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता ,

    कहहिं सुनहिं बहु बिध सब संता।

    अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड हैं। निर्गुण निर्विशेष निराकारी भी वाही है सगुन सविशेष साकारी भी वही है।

    ब्रह्म जीव और माया तीनों शाश्वत हैं। लेकिन माया जहां भगवान् की नौकरानी है जीव (मनुष्यात्मा ही नहीं शेष सभी जीव भी )माया के आधीन हैं। उसी के आवरा में लिपटे सुख दुःख भोगते रहते हैं। सेवा और भक्ति से ही मनुष्य जन्म सार्थक हो सकता है सेवा सेष प्राणियों की और भक्ति भगवान् की। सौद्देश्य बढ़िया पोस्ट।

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    उत्तर
    1. आदरणीय , मुझ जैसे जीव की भाग्य थी जो आपका आगमन हुआ , धन्यवाद सर बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. ,बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत बधाई आपको

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  5. सुंदर एवं सार्थक रचना ! आशीष भाई.

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    1. अपनी कीमती टिप्पणी देने हेतु , राजीव भाई आपको धन्यवाद

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  6. खूबसूरत पोस्ट / link देने के लिये thnx

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    1. पधारने व कीमती समय देने हेतु प्रतिभा जी आपको धन्यवाद ...आभार...!

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  7. भावपूर्ण ... ईश्वर के अनेक रूप हैं और इन्ही रूपों में इन्सान भी एक रूप है ... अलग अलग रंग, भाव वेश पर एक आत्मा, एक तत्व ...

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    1. जी दिगम्बर भाई , इस छोटे से भाई के छोटे से संदेश का उद्देश्य भी यही हैं , धन्यवाद व स्वागत हैं।

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