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बुद्धिवर्धक कहानियाँ - भाग - २ की कहानी आप ने पढ़ी तो होगी ही - नहीं पढ़ी तो आप यहाँ पे क्लिक करके पढ़ सकते है - तो मित्रों इस सुंदर कहानियों को आगे की ओर मार्ग देते हुए - पढ़ते हैं आज की नयी कहानी , जिसका नाम है - ( ~ प्राणायाम ही कल्पवृक्ष ~ )
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नारद जी एक बार किसी नगर में गए। वहाँ उन्हें पुराना मित्र मिला। वह बेचारा दुखों का मारा था। नारद जी बोले - " यहाँ व्यर्थ ही संकटों में फँसे हो। आओ , तुम्हें स्वर्ग ले चलूँ। "
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मित्र खुशी से बोला - " और क्या चाहिए ! "
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दोनों पहुँच गए स्वर्ग में। वहाँ सुंदर पत्तों वाला , घनी छाया देने वाला कल्पवृक्ष खड़ा था। नारद जी बोले - " तुम इस वृक्ष के नीचे बैठो , मै अंदर से मिलकर आता हूँ। "
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नारद जी चले गए तो मित्र ने इधर-उधर झाँका। मीठी छाया , शीतल वायु , रमणीक स्थान में आनंद आया तो सोचा - यदि आरामकुर्सी होती तो बैठ के सुख लेता !
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वह खड़ा था कल्पवृक्ष के नीचे , जहाँ जो इच्क्षा करो वही पूरी हो जाती है। आरामकुर्सी चाही थी , सो आ गई। बैठ गया उसपर। तब सोचा - यदि पलँग होता तो दो घड़ी लेट ही जाता ! सोचते ही पलँग आ गया। उसपर लेटते ही सोचा - घर होता तो पत्नी से कहता कि मेरी टाँगे दबा दे , मेरा सिर ही सहला दे ! सोचते ही कई अप्सराएँ आ गईं ! कोई पाँव दबाने लगी , कोई सिर सहलाने लगी , कोई गीत गाने लगी , कोई ठुमके लगाने लगी। उस व्यक्ति ने सोचा - यदि इन अप्सराओं के साथ पत्नी देख लेती तो झाड़ू से मेरी मरम्मत कर डालती ! सोचते ही झाड़ू लेकर पत्नी आ धमकी। लगी उसकी झाड़ू से पिटाई करने। पति पलँग से उठकर दौड़ा। आगे-आगे वह था , पीछे-पीछे झाड़ू उठाए पत्नी।
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तभी नारद जी लौटे। दूर से ही यह तमाशा देखा तो उसे फटकारा - " मूर्ख ! सोचना ही था तो कोई अच्छी बात सोचते। यह क्या सोच बैठे तुम ? यह तो कल्पवृक्ष है ! "
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सो मेरे भाइयों ! प्राणायाम भी कल्पवृक्ष है। इसके नीचे बैठो तो अच्छी बातें सोचना , बुरी बातें न सोचना !
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कहानी लेखक - महात्मा श्री आनन्द स्वामी
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नारद जी एक बार किसी नगर में गए। वहाँ उन्हें पुराना मित्र मिला। वह बेचारा दुखों का मारा था। नारद जी बोले - " यहाँ व्यर्थ ही संकटों में फँसे हो। आओ , तुम्हें स्वर्ग ले चलूँ। "
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मित्र खुशी से बोला - " और क्या चाहिए ! "
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दोनों पहुँच गए स्वर्ग में। वहाँ सुंदर पत्तों वाला , घनी छाया देने वाला कल्पवृक्ष खड़ा था। नारद जी बोले - " तुम इस वृक्ष के नीचे बैठो , मै अंदर से मिलकर आता हूँ। "
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नारद जी चले गए तो मित्र ने इधर-उधर झाँका। मीठी छाया , शीतल वायु , रमणीक स्थान में आनंद आया तो सोचा - यदि आरामकुर्सी होती तो बैठ के सुख लेता !
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वह खड़ा था कल्पवृक्ष के नीचे , जहाँ जो इच्क्षा करो वही पूरी हो जाती है। आरामकुर्सी चाही थी , सो आ गई। बैठ गया उसपर। तब सोचा - यदि पलँग होता तो दो घड़ी लेट ही जाता ! सोचते ही पलँग आ गया। उसपर लेटते ही सोचा - घर होता तो पत्नी से कहता कि मेरी टाँगे दबा दे , मेरा सिर ही सहला दे ! सोचते ही कई अप्सराएँ आ गईं ! कोई पाँव दबाने लगी , कोई सिर सहलाने लगी , कोई गीत गाने लगी , कोई ठुमके लगाने लगी। उस व्यक्ति ने सोचा - यदि इन अप्सराओं के साथ पत्नी देख लेती तो झाड़ू से मेरी मरम्मत कर डालती ! सोचते ही झाड़ू लेकर पत्नी आ धमकी। लगी उसकी झाड़ू से पिटाई करने। पति पलँग से उठकर दौड़ा। आगे-आगे वह था , पीछे-पीछे झाड़ू उठाए पत्नी।
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तभी नारद जी लौटे। दूर से ही यह तमाशा देखा तो उसे फटकारा - " मूर्ख ! सोचना ही था तो कोई अच्छी बात सोचते। यह क्या सोच बैठे तुम ? यह तो कल्पवृक्ष है ! "
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सो मेरे भाइयों ! प्राणायाम भी कल्पवृक्ष है। इसके नीचे बैठो तो अच्छी बातें सोचना , बुरी बातें न सोचना !
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कहानी लेखक - महात्मा श्री आनन्द स्वामी
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मित्रों व प्रिय पाठकों - कृपया अपने विचार टिप्पड़ी के रूप में ज़रूर अवगत कराएं - जिससे हमें लेखन व प्रकाशन का हौसला मिलता रहे ! धन्यवाद !
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जी आ गया समझ में :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे , लेकिन सर , जिनकी कहानी हैं , उनको तो थोड़ा सा त्बज्ज़ों दे देते , मेरा मतलब , महात्माजी जी से था , धन्यवाद व सद: स्वागत हैं ।
हटाएं॥ जय श्री हरि: ॥
बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंराहुल भाई धन्यवाद व स्वागत हैं !
हटाएंकाल्पनिक कहानी में कल्पना में कंजुशी क्यों ? दिल खोल कर सोचो और अच्छी बातें सोचो ...बहुत बढ़िया कहानी
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर बहुत धन्यवाद , जो आप आये ! व स्वागत है !
हटाएं|| जय श्री हरिः ||
समझ आ गया ... अच्छी बातें सोचने के फायदे ही फायदे हैं ... अच्छी कथा ...
जवाब देंहटाएंदिगंबर भाई जी , धन्यवाद व सद: स्वागत हैं !
हटाएं॥ जय श्री हरि: ॥