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गुरुवार, 13 मार्च 2014

बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग का सम्मान ~ ) - { Inspiring stories part - 1 }

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  ~ त्याग का सम्मान ~

एक था कंजूस सेठ । इतना कंजूस कि अपने-आप पर एक धेला भी खर्च नहीं करता था। लाखों का स्वामी था , फिर भी फटे कपड़े पहने रहता। केवल एक अच्छी बात थी उसमें - कि वह सत्संग में जाता था। वहाँ भी उसे कोई नहीं पूछता था। सबसे अंत में जूतों के पास बैठ जाता और कथा सुनता रहता।
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आखिर कथा के भोग पड़ने का दिन आया , तो सब लोग भेंट चढ़ाने कोई-न-कोई वस्तु लाए। कंजूस सेठ ( भक्त ) भी एक मैले-से रुमाल में कुछ लाया। सब लोग अपनी लाई वस्तु रखते गए। सेठ भी आगे बढ़ा। अपना रुमाल खोल दिया उसनें। उसमें से निकले- अशर्फियाँ , पौंड और सोना। उन्हें पंडित जी के सामने उड़ेलकर वह जाने लगा।

पंडित जी ने कहा - नहीं-नहीं सेठ जी ! वहाँ नहीं , यहाँ मेरे पास बैठिए। ____________________________________________________________________________________________________________________________
सेठ जी ने बैठते हुए कहा - " यह तो अशर्फियों और सोने का सम्मान है पंडित जी , मेरा सम्मान तो नहीं ? "
पंडित जी बोले - " आप भूलते हैं सेठ जी ! धन तो पहले भी आपके पास था। यह आपके धन का सम्मान नहीं , धन के त्याग का सम्मान है। "
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                          कहानी लेखक - महात्मा श्री आनन्द स्वामी
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मित्रों व प्रिय पाठकों - कृपया अपने विचार टिप्पड़ी के रूप में ज़रूर अवगत कराएं - जिससे हमें लेखन व प्रकाशन का हौसला मिलता रहे ! धन्यवाद !

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16 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी कहानी ... बहुत कुछ कहती है ...

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    1. धन्यवाद दिगंबर भाई व सदः स्वागत है |
      || जय श्री हरिः ||

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  2. बहुत सुंदर कहानी,सार्थक संदेश लिए.

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (14.03.2014) को "रंगों की बरसात लिए होली आई है (चर्चा अंक-1551)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें, वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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    उत्तर
    1. पोस्ट को स्थान देने हेतु धन्यवाद व स्वागत है |
      || जय श्री हरिः ||

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  4. बहुत ही रोचक, प्रेरक एवं शिक्षाप्रद कहानी ! साझा करने के लिए धन्यवाद !

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    1. आदरणीय आगमन हेतु बहुत धन्यवाद , व सद: स्वागत हैं ।
      ॥ जय श्री हरि: ॥

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