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बुद्धिवर्धक कहानियाँ - भाग - ४ पर आप सबका स्वागत है , भाग - ३ कि कहानी तो आपने पढ़ी ही होगी , अगर नहीं ! तो यहाँ पे क्लिक करें ! तो बात करतें है कहानियों को सुंदर मार्ग देते हुए आजकी सुन्दर कहानी की ! जिसका नाम है - ( ~ त्याग में आनंद ~ )
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एक साधु नगरी में रहता था। हर घड़ी प्रभु - भक्ति के गीत गाता था। लोग उसका सम्मान करते। उसे कितनी ही वस्तुएँ देते।
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एक दिन साधु ने शिष्य से कहा - " बेटा ! चलो , अब किसी दूसरे नगर में चलें। "
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शिष्य बोला - " नहीं गुरु महाराज ! यहाँ चढ़ावा बहुत चढ़ता है। कुछ पैसे जमा हो जाएँ , तब चलेंगे। "
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गुरु ने कहा - " पैसे जमा करके क्या करेगा ? चल मेरे साथ ! पैसे जमा नहीं करने हमें। "
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चल पड़े दोनों। शिष्य ने कुछ पैसे जमा कर लिये थे , उन्हें अपनी धोती में बाँध रखा था।
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चलते-चलते मार्ग में नदी पड़ गई। एक नौका भी थी वहाँ। नाविक पार पहुँचाने के दो आने माँगता था। साधु के पास पैसे नहीं थे। शिष्य देना नहीं चाहता था। दोनों बैठ गए।
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नाविक घर जाने लगा तो बोला - " बाबा ! तुम कब तक यहाँ बैठे रहोगे ? यह है जंगल। रात को इस किनारे पर शेर पानी पीने आता है। दूसरे भयानक जानवर भी आते हैं। वे तुम्हें कच्चा चबा जाएँगे। "
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शिष्य ने कहा - " तुम हमें पार ले चलो। "
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नाविक बोला - " मै तो दो-दो आने लिये बिना नहीं ले-जा सकता। "
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शिष्य को जान बड़ी प्यारी थी। धोती से चार आने निकालकर दे दिए - " अच्छा , अब तो ले चलो ! "
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नाविक ने किराया लिया और पार पहुँचा दिया।
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शिष्य बोला - " देखा गुरुजी ! आप तो कहते थे कि पैसे जमा नहीं करने हमें ? "
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गुरु जी ने हँसते हुए कहा - " सोचकर देख बेटा ! पैसा जमा करने से तुम्हें सुख नहीं मिला , पैसा देने से मिला है। सुख तो त्याग में है , जमा करने में नहीं। "
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कहानी लेखक - महात्मा श्री आनंद स्वामी
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एक साधु नगरी में रहता था। हर घड़ी प्रभु - भक्ति के गीत गाता था। लोग उसका सम्मान करते। उसे कितनी ही वस्तुएँ देते।
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एक दिन साधु ने शिष्य से कहा - " बेटा ! चलो , अब किसी दूसरे नगर में चलें। "
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शिष्य बोला - " नहीं गुरु महाराज ! यहाँ चढ़ावा बहुत चढ़ता है। कुछ पैसे जमा हो जाएँ , तब चलेंगे। "
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गुरु ने कहा - " पैसे जमा करके क्या करेगा ? चल मेरे साथ ! पैसे जमा नहीं करने हमें। "
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चल पड़े दोनों। शिष्य ने कुछ पैसे जमा कर लिये थे , उन्हें अपनी धोती में बाँध रखा था।
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चलते-चलते मार्ग में नदी पड़ गई। एक नौका भी थी वहाँ। नाविक पार पहुँचाने के दो आने माँगता था। साधु के पास पैसे नहीं थे। शिष्य देना नहीं चाहता था। दोनों बैठ गए।
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नाविक घर जाने लगा तो बोला - " बाबा ! तुम कब तक यहाँ बैठे रहोगे ? यह है जंगल। रात को इस किनारे पर शेर पानी पीने आता है। दूसरे भयानक जानवर भी आते हैं। वे तुम्हें कच्चा चबा जाएँगे। "
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शिष्य ने कहा - " तुम हमें पार ले चलो। "
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नाविक बोला - " मै तो दो-दो आने लिये बिना नहीं ले-जा सकता। "
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शिष्य को जान बड़ी प्यारी थी। धोती से चार आने निकालकर दे दिए - " अच्छा , अब तो ले चलो ! "
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नाविक ने किराया लिया और पार पहुँचा दिया।
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शिष्य बोला - " देखा गुरुजी ! आप तो कहते थे कि पैसे जमा नहीं करने हमें ? "
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गुरु जी ने हँसते हुए कहा - " सोचकर देख बेटा ! पैसा जमा करने से तुम्हें सुख नहीं मिला , पैसा देने से मिला है। सुख तो त्याग में है , जमा करने में नहीं। "
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कहानी लेखक - महात्मा श्री आनंद स्वामी
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मित्रों व प्रिय पाठकों - कृपया अपने विचार टिप्पड़ी के रूप में ज़रूर अवगत कराएं - जिससे हमें लेखन व प्रकाशन का हौसला मिलता रहे ! धन्यवाद !
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सुंदर :)
जवाब देंहटाएंसर धन्यवाद व स्वागत हैं !
हटाएं॥ जय श्री हरि: ॥
बहुत खूब बहुत ही लाज़वाब अभिव्यक्ति आपकी। बधाई
जवाब देंहटाएंएक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''मार डाला हमें जग हँसाई ने''
धन्यवाद अभिषेक भाई व स्वागत हैं !
हटाएं॥ जय श्री हरि: ॥
प्रेरक कथा, सार्थक ब्लॉग।
जवाब देंहटाएंप्रेरक कथा, सार्थक ब्लॉग।
जवाब देंहटाएंदेवेंद्र भाई बहुत बहुत धन्यवाद जो आपका आगमन हुआ व स्वागत हैं !
हटाएं॥ जय श्री हरि: ॥
really inspiring story .thanks to share here .
जवाब देंहटाएंआ० शिखा जी , आगमन हेतु धन्यवाद व स्वागत हैं ।
हटाएं॥ जय श्री हरि: ॥
बहुत सुंदर एवं प्रेरक कहानी.
जवाब देंहटाएंराजीव भाई धन्यवाद व स्वागत हैं !
हटाएं॥ जय श्री हरि: ॥
shandar post :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय धन्यवाद व अपनों का सदः ही स्वागत है , धन्यवाद !
हटाएं|| जय श्री हरिः ||
आभार व स्वागत है |
जवाब देंहटाएंसुन्दर....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद व स्वागत हैं ।
हटाएं॥ जय श्री हरि: ॥
बढ़िया व बेहतर प्रस्तुति , आशीष सर धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंऐसे ही लिखते रहें.
शुभ हो आपके लिए.
सर बहुत धन्यवाद जो आपका आगमन हुआ व हार्दिक स्वागत है !
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