==============================================================================
बुद्धिवर्धक कहानियाँ - भाग - ५ पे आप सबका तहेदिल से स्वागत है , भाग - ४ की कहानी तो आपने पढ़ी ही होगी , अगर नहीं तो यहाँ पर क्लिक करें , तो आइये अब चलते है आज की सुन्दर व प्रेरक कहानी की तरफ़ , जिसका नाम है - ( ~ अनमोल रत्न है यह शरीर ~ )
==============================================================================
लाहौर में लाहौरी और शाहआलमी दरवाजों के बाहर कभी एक बाग़ था। वहाँ एक फ़क़ीर था। उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे। मैंने कई बार देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर , माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था। एक बार मैंने उस फ़क़ीर से पूछा - " पैसे तो माँग लेते हो , रोटी कैसे खाते हो ? "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उसने बताया - " जब शाम उतर आती है तो उस नानबाई को पुकारता हूँ , ' ओ जुम्मा ! आके पैसे ले जा , रोटियाँ दे जा। ' वह भीख के पैसे उठा ले जाता है , रोटियाँ दे जाता है। "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मैंने पूछा - " खाते कैसे हो बिना हाथों के ? "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
वह बोला - " खुद तो खा नहीं सकता। आने-जानेवालों को आवाज़ देता हूँ ' ओ जानेवालों ! प्रभु तुम्हारे हाथ बनाए रखे , मेरे ऊपर दया करो ! रोटी खिला दो मुझे , मेरे हाथ नहीं हैं। ' हर कोई तो सुनता नहीं , लेकिन किसी-किसी को तरस आ जाता है। वह प्रभु का प्यारा मेरे पास आ बैठता है। ग्रास तोड़कर मेरे मुँह में डालता जाता है , मैं खा लेता हूँ। "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने पूछ लिया - " पानी कैसे पीते हो ? "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उसने बताया - " इस घड़े को टांग के सहारे झुका देता हूँ तो प्याला भर जाता है। तब पशुओं की तरह झुककर पानी पी लेता हूँ। "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मैंने कहा - " यहाँ मच्छर बहुत हैं। यदि माथे पर मच्छर लड़ जाए तो क्या करते हो ? "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
वह बोला - " तब माथे को ज़मीन पर रगड़ता हूँ। कहीं और मच्छर काट ले तो पानी से निकली मछली की तरह लोटता और तड़पता हूँ। "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हाय ! केवल दो हाथ न होने से कितनी दुर्गति होती है !
अरे , इस शरीर की निंदा मत करो ! यह तो अनमोल रत्न है ! शरीर का हर अंग इतना कीमती है कि संसार का कोई भी खज़ाना उसका मोल नहीं चुका सकता। परन्तु यह भी तो सोचो कि यह शरीर मिला किस लिए है ? इसका हर अंग उपयोगी है। इनका उपयोग करो !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
स्मरण रहे कि ये आँखे पापों को ढूँढने के लिए नहीं मिलीं। कान निंदा सुनने के लिए नहीं मिले। हाथ दूसरों का गला दबाने के लिए नहीं मिले। यह मन भी अहंकार में डूबने या मोह-माया के जाल में फँसने के लिए नहीं मिला। यह वाणी कड़वा बोलने और आग भड़काने के लिए नहीं मिली , अपितु प्रभु का स्मरण करने और मीठा सत्य बोलने के लिए मिली है।
==============================================================================
कहानी लेखक - महात्मा श्री आनंद स्वामी
==============================================================================
==============================================================================
बुद्धिवर्धक कहानियाँ - भाग - ५ पे आप सबका तहेदिल से स्वागत है , भाग - ४ की कहानी तो आपने पढ़ी ही होगी , अगर नहीं तो यहाँ पर क्लिक करें , तो आइये अब चलते है आज की सुन्दर व प्रेरक कहानी की तरफ़ , जिसका नाम है - ( ~ अनमोल रत्न है यह शरीर ~ )
==============================================================================
लाहौर में लाहौरी और शाहआलमी दरवाजों के बाहर कभी एक बाग़ था। वहाँ एक फ़क़ीर था। उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे। मैंने कई बार देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर , माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था। एक बार मैंने उस फ़क़ीर से पूछा - " पैसे तो माँग लेते हो , रोटी कैसे खाते हो ? "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उसने बताया - " जब शाम उतर आती है तो उस नानबाई को पुकारता हूँ , ' ओ जुम्मा ! आके पैसे ले जा , रोटियाँ दे जा। ' वह भीख के पैसे उठा ले जाता है , रोटियाँ दे जाता है। "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मैंने पूछा - " खाते कैसे हो बिना हाथों के ? "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
वह बोला - " खुद तो खा नहीं सकता। आने-जानेवालों को आवाज़ देता हूँ ' ओ जानेवालों ! प्रभु तुम्हारे हाथ बनाए रखे , मेरे ऊपर दया करो ! रोटी खिला दो मुझे , मेरे हाथ नहीं हैं। ' हर कोई तो सुनता नहीं , लेकिन किसी-किसी को तरस आ जाता है। वह प्रभु का प्यारा मेरे पास आ बैठता है। ग्रास तोड़कर मेरे मुँह में डालता जाता है , मैं खा लेता हूँ। "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने पूछ लिया - " पानी कैसे पीते हो ? "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उसने बताया - " इस घड़े को टांग के सहारे झुका देता हूँ तो प्याला भर जाता है। तब पशुओं की तरह झुककर पानी पी लेता हूँ। "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मैंने कहा - " यहाँ मच्छर बहुत हैं। यदि माथे पर मच्छर लड़ जाए तो क्या करते हो ? "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
वह बोला - " तब माथे को ज़मीन पर रगड़ता हूँ। कहीं और मच्छर काट ले तो पानी से निकली मछली की तरह लोटता और तड़पता हूँ। "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हाय ! केवल दो हाथ न होने से कितनी दुर्गति होती है !
अरे , इस शरीर की निंदा मत करो ! यह तो अनमोल रत्न है ! शरीर का हर अंग इतना कीमती है कि संसार का कोई भी खज़ाना उसका मोल नहीं चुका सकता। परन्तु यह भी तो सोचो कि यह शरीर मिला किस लिए है ? इसका हर अंग उपयोगी है। इनका उपयोग करो !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
स्मरण रहे कि ये आँखे पापों को ढूँढने के लिए नहीं मिलीं। कान निंदा सुनने के लिए नहीं मिले। हाथ दूसरों का गला दबाने के लिए नहीं मिले। यह मन भी अहंकार में डूबने या मोह-माया के जाल में फँसने के लिए नहीं मिला। यह वाणी कड़वा बोलने और आग भड़काने के लिए नहीं मिली , अपितु प्रभु का स्मरण करने और मीठा सत्य बोलने के लिए मिली है।
==============================================================================
कहानी लेखक - महात्मा श्री आनंद स्वामी
==============================================================================
मित्रों व प्रिय पाठकों - कृपया अपने विचार टिप्पड़ी के रूप में ज़रूर अवगत कराएं - जिससे हमें लेखन व प्रकाशन का हौसला मिलता रहे ! धन्यवाद !
==============================================================================
बहुत सुंदर कहाँनी !
जवाब देंहटाएंसुशील सर , धन्यवाद व स्वागत हैं !
हटाएंधन्यवाद व स्वागत हैं !
जवाब देंहटाएंsundar
जवाब देंहटाएंआ. सर धन्यवाद व सदः ही स्वागत है |
हटाएंशिक्षाप्रद एवं सार्थक कहानी ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंआ. बहुत धन्यवाद जो आपका आगमन हुआ व स्वागत है |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-04-2014) को "टूटे पत्तों- सी जिन्दगी की कड़ियाँ" (चर्चा मंच-1578) पर भी है!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद व आभार !
हटाएंशिक्षाप्रद कहानी ...
जवाब देंहटाएंकौशल भाई धन्यवाद व सद: स्वागत हैं !
हटाएंबहुत सुंदर एवं शिक्षाप्रद कहानी.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : सूफी और कलंदर
धन्यवाद व स्वागत हैं , राजीव भाई !
हटाएंहिंदी की कहानियों का श्रेष्ठ संकलन पढ़िए
जवाब देंहटाएं