प्रिय पाठकों व मित्रों प्रश्न उत्तर भाग - ५ की पोस्ट की ठीक ठाक सफलता के बाद , पुनः उपस्थित हूँ भाग - ६ की पोस्ट के साथ , आशा है आपने भाग - ५ की पोस्ट देखी ही होगी , अगर नहीं देखी तो यहाँ पे क्लिक करें , मित्रों आज की पोस्ट का सम्बन्ध पूजा पाठ से जुड़ा हुआ हैं। कभी कदार पूजा पाठ व शुभ अवसरों पर , उस कार्य के पूर्व व कार्य के अंत में हमारा सामना एक विशेष प्रकार की ध्वनि से होता हैं। जिसको हिंदू धर्म में शंख के नाम से पुकारा व जाना जाता हैं , हमारी आज की पोस्ट इसी से सम्बन्धित हैं , तो आइये समय का ध्यान रखते हुए सीधे बात करते हैं आज की पोस्ट यानी कि ☞ प्रश्न ☜ की ✔
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प्रश्न -- शंख क्या है ? व पूजा - कथा , आरती एवम् अन्य धार्मिक कार्य करते समय हिन्दू लोग शंख फूकतें हैं , क्यों ?
उत्तर -- Meaning of "शंख (Shankh)" in English. "शंख" के लिए अंग्रेजी अर्थ व शब्द Noun, Conch, Shell, Others Testaceous, Scallop, Conch-shell , जिसे मोलस्कश परिवार में जगह दी गयी है। यह एक विशेष समुद्री जीव का कवच है। एक समुद्री जल जंतु जिसका ऊपरी आवरण या खोल फूँककर बजाने के काम में आता है। मतलब वह जल जंतु का खोल जिसके ऊपरी छेद में मुँह से जोर से हवा फूँकने पर एक विशेष प्रकार की ध्वनी का शब्द होता है। मुख्यतः यह दो प्रकार का होता है , दक्षिणावर्त्त और वामावर्त्त जो कि ज्यादातर पेचदार वामावर्त या दक्षिणावर्त में बना होता है। वैसे सामान्यता शंख - तीन प्रकार के होते हैं - दक्षिणावर्ती , मध्यावर्ती और वामावर्ती। इनमें दक्षिणावर्ती शंख दाईं तरफ से खुलता है , मध्यावर्ती बीच से और वामावर्ती बाईं तरफ से खुलता है। मध्यावर्ती शंख कम पाये जाने के कारण बहुत ही कम मिलते हैं। यह हिन्दु धर्म में अति पवित्र माना जाता है। यह धर्म का प्रतीक माना जाता है। इसका प्रमुख कारण ये है कि समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक रत्न शंख भी है। और माता श्री लक्ष्मी के समान शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है , इसलिए इसे माता श्री लक्ष्मी के भाई के रूप में भी जाना जाता है।
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हिन्दू धर्म जन सामान्य में ऐसी मान्यता है कि , जिस घर में शंख होता है उस घर में सुख-समृद्धि का संचार रहता है ऐसा कहा जाता है कि , शंख की ध्वनि जहां तक प्रसारित होती हैं उस छेत्र की वायु शुद्ध और उर्जावान हो जाती है। शंख वादन के पीछे हिन्दू वर्ग की पूर्ण रूप से धार्मिक आस्था निहित है शास्त्रों में इसे बहुत ही चमत्कारिक बतलाया गया है। इन तीन प्रकार के शंखों के अलावा और भी अनेक प्रकार के शंख पाए जाते हैं शंख को विजयघोष का प्रतीक माना जाता है। नौ निधियों में भी शंख का उल्लेख है। अथर्व वेद में शंख को पापहारी , दीर्घायु प्रदाता और शत्रुओं को परास्त करने वाला कहा गया है। वैसे तो शंख लगभग हर सागर महासागर में पाया जाता है, परंतु भारत वर्ष में यह मुख्यतः मद्रास ,बंगाल की खाड़ी , पुरीतट , रामेश्वरम , कन्या कुमारी और हिंद महासागर में पाया जाता है ।शंख वादन के लाभकारी औषधीय गुण भी हैं। इसे बजाने से श्वास रोग से बचाव होता है। यही नहीं , इसमें रखे जल का सेवन करने से कई अनेक बीमारियों से रक्षा होती है। अन्य ग्रंथों में शंख के विषय में कहा गया है-
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ज्योतिष के अनुसार शंख का सम्बंध बुध गृह से है। अथर्ववेद , १० . १० . २ के अनुसार शंख कि ध्वनि जहाँ तक पहुँचती है वहाँ तक के राक्षसों का नाश हो जाता है। ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न महानगर में एक बार बिना पेट्रोल, बिजली या डीजल की कार को शंख ध्वनि से चलाने की खबर आई थी। व प्रथम विश्व युद्ध (1914-1919) के समय जर्मन सेना ने युद्ध के दौरान शंखनाद किया था। यह शंखनाद पांचजन्य था। कहते हैं कि इससे एक ऐसी विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न की जाती थी , जिसकी शक्ति मृत्यु-कारण जैसी घातक होती थी , और उसे इस तरह से वायुमंडल में प्रसारित किया जाता था कि उसके प्रभाव से शत्रु सैनिक निश्चेष्ट व निष्प्राण हो जाते थे। शंख शब्द का उपयोग यशपाल जैन ने अपनी बहुचर्चित कहानी सिंहासन बत्तीसी में इस प्रकार किया है . "एक का नाम शंख , दूसरे का नाम विक्रमादित्य और तीसरे का भर्तृहरि रक्खा गया।" पिट्सवर्ग ( अमेरिका ) के एक चिकित्सक ने शंख ध्वनि चिकित्सा प्रणाली को विकसित करने के लिए एक संस्था का सृजन किया है जहां अधिक तर रोगों का उपचार शंख की ध्वनि से किया जाता है। इस संस्था का नाम संकषेप में आर फॉर आर कहा जाता है।पूजा में शंख ध्वनि का तात्पर्य यह है कि जिस देवी अथवा देवता की पूजा कर रहें हैं , शंख्ध्व्नी करके उनका जयकारा करते हैं।
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शंख की उत्पत्ति का प्रसंग-- पुराणों में शंख की उत्पत्ति के बारे एक प्रसंग में कहा गया है कि भगवान और शंखचूंड़ राक्षस में जब अत्यंत भयंकर युद्ध हो रहा था , तब भगवान श्री शंकर ने भगवान श्री विष्णु से प्राप्त दिव्य त्रिशूल से उस दुष्ट शंखचूंड़ का वध करके उसके टुकड़े कर व अस्थि पंजर समुद्र में डाल दिए , और उन्हीं अस्थि पंजरों से शंख की उत्पत्ति हुई। इस प्रसंग का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में उसके प्रकृति खंड के 18 वें अध्याय में भी है।
अन्य पाये जाने वाले शंखो के नाम -- जैसे लक्ष्मी शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, गोमुखी शंख, देव शंख, राक्षस शंख, विष्णु शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, शनि शंख, राहु एवं केतु शंख।
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प्रश्न -- शंख क्या है ? व पूजा - कथा , आरती एवम् अन्य धार्मिक कार्य करते समय हिन्दू लोग शंख फूकतें हैं , क्यों ?
उत्तर -- Meaning of "शंख (Shankh)" in English. "शंख" के लिए अंग्रेजी अर्थ व शब्द Noun, Conch, Shell, Others Testaceous, Scallop, Conch-shell , जिसे मोलस्कश परिवार में जगह दी गयी है। यह एक विशेष समुद्री जीव का कवच है। एक समुद्री जल जंतु जिसका ऊपरी आवरण या खोल फूँककर बजाने के काम में आता है। मतलब वह जल जंतु का खोल जिसके ऊपरी छेद में मुँह से जोर से हवा फूँकने पर एक विशेष प्रकार की ध्वनी का शब्द होता है। मुख्यतः यह दो प्रकार का होता है , दक्षिणावर्त्त और वामावर्त्त जो कि ज्यादातर पेचदार वामावर्त या दक्षिणावर्त में बना होता है। वैसे सामान्यता शंख - तीन प्रकार के होते हैं - दक्षिणावर्ती , मध्यावर्ती और वामावर्ती। इनमें दक्षिणावर्ती शंख दाईं तरफ से खुलता है , मध्यावर्ती बीच से और वामावर्ती बाईं तरफ से खुलता है। मध्यावर्ती शंख कम पाये जाने के कारण बहुत ही कम मिलते हैं। यह हिन्दु धर्म में अति पवित्र माना जाता है। यह धर्म का प्रतीक माना जाता है। इसका प्रमुख कारण ये है कि समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक रत्न शंख भी है। और माता श्री लक्ष्मी के समान शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है , इसलिए इसे माता श्री लक्ष्मी के भाई के रूप में भी जाना जाता है।
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हिन्दू धर्म जन सामान्य में ऐसी मान्यता है कि , जिस घर में शंख होता है उस घर में सुख-समृद्धि का संचार रहता है ऐसा कहा जाता है कि , शंख की ध्वनि जहां तक प्रसारित होती हैं उस छेत्र की वायु शुद्ध और उर्जावान हो जाती है। शंख वादन के पीछे हिन्दू वर्ग की पूर्ण रूप से धार्मिक आस्था निहित है शास्त्रों में इसे बहुत ही चमत्कारिक बतलाया गया है। इन तीन प्रकार के शंखों के अलावा और भी अनेक प्रकार के शंख पाए जाते हैं शंख को विजयघोष का प्रतीक माना जाता है। नौ निधियों में भी शंख का उल्लेख है। अथर्व वेद में शंख को पापहारी , दीर्घायु प्रदाता और शत्रुओं को परास्त करने वाला कहा गया है। वैसे तो शंख लगभग हर सागर महासागर में पाया जाता है, परंतु भारत वर्ष में यह मुख्यतः मद्रास ,बंगाल की खाड़ी , पुरीतट , रामेश्वरम , कन्या कुमारी और हिंद महासागर में पाया जाता है ।शंख वादन के लाभकारी औषधीय गुण भी हैं। इसे बजाने से श्वास रोग से बचाव होता है। यही नहीं , इसमें रखे जल का सेवन करने से कई अनेक बीमारियों से रक्षा होती है। अन्य ग्रंथों में शंख के विषय में कहा गया है-
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शंखचंद्रार्कदैवत्यं मध्ये वरुणदैवतम्। पृष्ठे प्रजापतिं विधादग्ते गंगासरस्वतीम्।। त्रैलोक्ये यानितीर्थानि वासुदेवस्यचाज्ञया। शंखे तिष्ठन्ति विप्रेन्द्र तस्मात् शंखप्रपूजयेत।।
दर्शनेन ही शंखस्य किं पुनः स्पर्शनेन तुविलयं यान्तिपापानि हिमवद् भास्करोदमे।
अर्थात् -- शंख सूर्य व चंद्र के समान देव स्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है।इसीलिए शंखकी पूजा की जाती है। जिस प्रकार धूप की गर्मीसे बर्फ पिघलजाती है, उसी प्रकार शंखके दर्शनमात्र से पापनष्ट हो जाते हैं।
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ज्योतिष के अनुसार शंख का सम्बंध बुध गृह से है। अथर्ववेद , १० . १० . २ के अनुसार शंख कि ध्वनि जहाँ तक पहुँचती है वहाँ तक के राक्षसों का नाश हो जाता है। ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न महानगर में एक बार बिना पेट्रोल, बिजली या डीजल की कार को शंख ध्वनि से चलाने की खबर आई थी। व प्रथम विश्व युद्ध (1914-1919) के समय जर्मन सेना ने युद्ध के दौरान शंखनाद किया था। यह शंखनाद पांचजन्य था। कहते हैं कि इससे एक ऐसी विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न की जाती थी , जिसकी शक्ति मृत्यु-कारण जैसी घातक होती थी , और उसे इस तरह से वायुमंडल में प्रसारित किया जाता था कि उसके प्रभाव से शत्रु सैनिक निश्चेष्ट व निष्प्राण हो जाते थे। शंख शब्द का उपयोग यशपाल जैन ने अपनी बहुचर्चित कहानी सिंहासन बत्तीसी में इस प्रकार किया है . "एक का नाम शंख , दूसरे का नाम विक्रमादित्य और तीसरे का भर्तृहरि रक्खा गया।" पिट्सवर्ग ( अमेरिका ) के एक चिकित्सक ने शंख ध्वनि चिकित्सा प्रणाली को विकसित करने के लिए एक संस्था का सृजन किया है जहां अधिक तर रोगों का उपचार शंख की ध्वनि से किया जाता है। इस संस्था का नाम संकषेप में आर फॉर आर कहा जाता है।पूजा में शंख ध्वनि का तात्पर्य यह है कि जिस देवी अथवा देवता की पूजा कर रहें हैं , शंख्ध्व्नी करके उनका जयकारा करते हैं।
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शंख की उत्पत्ति का प्रसंग-- पुराणों में शंख की उत्पत्ति के बारे एक प्रसंग में कहा गया है कि भगवान और शंखचूंड़ राक्षस में जब अत्यंत भयंकर युद्ध हो रहा था , तब भगवान श्री शंकर ने भगवान श्री विष्णु से प्राप्त दिव्य त्रिशूल से उस दुष्ट शंखचूंड़ का वध करके उसके टुकड़े कर व अस्थि पंजर समुद्र में डाल दिए , और उन्हीं अस्थि पंजरों से शंख की उत्पत्ति हुई। इस प्रसंग का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में उसके प्रकृति खंड के 18 वें अध्याय में भी है।
अन्य पाये जाने वाले शंखो के नाम -- जैसे लक्ष्मी शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, गोमुखी शंख, देव शंख, राक्षस शंख, विष्णु शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, शनि शंख, राहु एवं केतु शंख।
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तो मित्रों इसी के साथ विदा कीजिए , मिलते है अगली पोस्ट पे , धन्यवाद !!! ( चित्र गूगल से साभार )
मित्रों ये जानकारी आपको कैसी लगी , अपनी टिप्पणी ज़रूर दें !
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
रविकर सर , आगमन व कीमती टिप्पणी देने हेतु आपको धन्यवाद , व स्वागत हैं।
हटाएंसूर्य-चन्द्र सम शंख यह, बसे वरुण मध्यांग |
हटाएंब्रम्हा बैठे पृष्ठ पर, अग्र सरस्वति-गंग |
अग्र सरस्वति-गंग, विराजे रविकर वाणी |
जाय जीत हर जंग, निकलती धुनि कल्याणी |
पाये चौदह रत्न, रत्न यह हर हर बम बम |
ब्रम्हा विष्णु महेश, भगवती सूर्य चन्द्र सम ||
बहुत ही सुन्दर , बिल्कुल आपके नाम की तरह , धन्यवाद
हटाएंआदरणीय , बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर एवं ज्ञानवर्धक जानकारी भाई जी ..
जवाब देंहटाएंनीरज भाई , पधारने व टिप्पणी हेतु धन्यवाद व स्वागत हैं।
हटाएंसुन्दर और ज्ञान से परिपूर्ण प्रस्तुति ,
जवाब देंहटाएंश्री मधु जी , आगमन व सुन्दर सी टिप्पणी देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद , हमारे आमंत्रण से आप आयी , इसके लिए आपको धन्यवाद व बहुत स्वागत हैं।
हटाएंगीता में उल्लेख है दूसरे अध्ययाय में इतर भी युद्ध से पूर्व कौरव और पांडव पक्ष के यौद्धा अपने अपने शंख फूंकते हैं जिनसे भूमण्डल कांपने लगता है। नामों का भी विवरण दिया गया है। विषाणु का नाश होता ही शंख ध्वनि से (तरंगों की विशेष आवृत्ति से ). बहुत बढ़िया सांस्कृतिक जानकारी दी है आपने अधुनातन विज्ञान के आलोक में शंख चिकित्सा का ज़िक्र भी किया है। फेफड़ों का व्यायाम है शंख बजाना। एक कला एक प्राणानाम भी है शंख बजाना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर , सर्वप्रथम शुभ गुरूपूर्णिमां , धन्यवाद , आपकी बात से मैं पूरी ब्लकि पूरी तरह सहमत हूँ , धन्यवाद व स्वागत हैं।
हटाएंशंख का इतिहास ... पुराणिक महत्त्व और वर्तमान स्थिति ... सभी कुछ एक जगह पे लिख दिया ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जी दिगम्बर भाई , आपने बिल्कुल सही पहचाना , इस पोस्ट का उद्देश्य भी यही हैं। बहुत बहुत धन्यवाद व स्वागत हैं , मेरा मानना हैं कि अगर कोई किसी भी प्रकार से जानकारी लेने हेतु पहुँचे तो ईश्वर की कृपा से उसे जितनी हो सके उतनी तो मिल जाये , धन्यवाद , और अगर वो संतुष्ट हैं तो हम अपने अाप को भाग्यशाली समझेगें , धन्यवाद !!!
हटाएंबहुत रोचक जानकारी...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद , कैलाश सर , व बहुत बहुत स्वागत हैं।
हटाएंलाजवाब तुम / निःशब्द मैं !
जवाब देंहटाएंआपके लिए ब्लॉग पर h -----
रात और मैं
धन्यवाद , श्री आदरणीया अभी देखता हूँ जी , व स्वागत हैं।
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंभई, बड़ी भाग्य हमारे जो श्री मनोज भाई हमारे यहाँ पधारे , बहुत बहुत धन्यवाद व स्वागत हैं।
हटाएंहम अपने पाठकों को ये बता देना चाहते हैं कि हमारे आदर्श मनोज भाई एक कामयाब ब्लॉगर हैं , और काफी समय से मैं इनको फौलो कर रहा हूँ , धन्यवाद , मनोज भाई एकबार फिर से आपका धन्यवाद व स्वागत हैं।
हटाएंशुक्रिया भाई साहब आपकी टिप्पणियों का सार गर्भित रागात्मक लेखन का आपके।
जवाब देंहटाएंक्षमा करें अगर कोई भूल हो गयी हो तो , आदरणीय सर अगर कोई विशेष वार्तालाप करनी हो तो कृपया मेरा ईमेल पता --: ashish.bhai8@gmail.com , धन्यवाद
हटाएंInformative..... Sunder Post
जवाब देंहटाएंसर जी , धन्यवाद व स्वागत हैं , आप जैसे भाईयों हमें प्रोत्साहन मिलता हैं , धन्यवाद व बहुत बहुत स्वागत हैं।
हटाएंआदरणीय गुरुजनों , मित्रों व पाठकों , एक विनती शायद टिप्पणी में आपको कुछ ख़ेदनीय लग सकता हैं , मेरे विचार से प्रो ब्लागिंग एक ऐसा विषय है जिसमें आपको रागात्मक लेखन देना पड़ सकता हैं क्योंकि ये ऐसा विषय हैं ही , और सर कहीं कहीं पर जब बात न सुनी जा रही हो तो थोड़ा तेज भी बोलना पड़ता हैं , क्योंकि मानवाधिकार के नाते आपको अपनी बात बोलने के लिए पूरी छूट हैं , इसका मतलब इतनी जल्दी ये न निकालें कि ये गलत तरीका व गर्वीला तरीका इत्यादि हैं , आदरणीय व प्रिय पाठकों मजबूरी वश मेरा काम ही ऐसा हैं , कि हमें अपना स्वभाव ऐसा बनाना पड़ता हैं , क्योंकि इसका संबंध मीडिया से हैं , अपने प्रिय पाठकों व आदरणीय गुरुजनों से एकबार फिर क्षमा चाहता हूँ , धन्यवाद
जवाब देंहटाएं" जै श्री हरि: "
उपयोगी जानकारी देती रचना बहुत अच्छा प्रयास
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद , आदरणीय , आपका आशीर्वाद अच्छा लगता है व बारंबार स्वागत है
हटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी है ! आशीष भाई.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : मेघ का मौसम झुका है
बहुत बहुत धन्यवाद , व राजीव भाई आपका स्वागत है , धन्यवाद
हटाएंज्ञानवर्धक रचना आशीष जी। आपने एक बेहद अच्छे विषय पर बेहद शानदार जानकारी दी है। शुभकामनाओं सहित आपका आभार।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद , मनोज भाई व स्वागत हैं।
हटाएंआपकी यह पोस्ट पर पहले समय की कमी की वजह से पूरी पढ़ नहीं पाया था। आज समय मिला तब आपके लेखन की पुनः तारीफ करने के लिए अपने आप को रोक नहीं रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ क़ि आपके सुन्दर लेखन का आंनद निरंतर मिलता रहेगा।
जवाब देंहटाएंअरे सर तब तो अनर्थ हो जायेगा , सर आप हमारे आदर्श हैं , बस आपका प्रेम , निर्देश और आशीर्वाद मिलता रहे बस हमें और क्या चाहिए , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया जानकारी.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर blog...
आभार.
अनु
अनु जी , आपको बहुत बहुत धन्यवाद व स्वागत हैं।
हटाएंसुन्दर एवं जानकारी से परिपूर्ण। बधाई।
जवाब देंहटाएंनीरज भाई , बहुमूल्य समय दिया , बहुत धन्यवाद व स्वागत हैं।
हटाएंधन्यवाद राजीव भाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी टिपण्णी का शुभ लेखन का।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर , आपका स्वागत है
हटाएं" जै श्री हरि: "
बहुत बढ़िया जानकारी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआदरणीय कविता जी , आगमन व बहुमूल्य समय देने हेतु आपको धन्यवाद व स्वागत हैं।
हटाएंसुन्दर रचनात्मक लेखन। शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर , हमेशा स्वागत हैं , आँख
हटाएं॥ जै श्री हरि: ॥
आपकी सद्य टिप्पणियाँ ही हमारे लिखे की आंच हैं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय , आपके लेख इस प्रकार के होते ही हैं हम अपने आप को रोक नहीं पाते , और काम की जानकारियाँ भी , इसलिए ये गलती हमसे हो जाती हैं , और आगे भी जो लेख आप हम देशवासियों के हित के लिए लायेगें वो ठीक व काम का होने पर ही सर हम टिप्पणी देगें , ये तो सर ईश्वर की कृपा हैं जो आपके लेख लगभग रूप से बहुत महत्वपूर्ण होते हैं , और कोई त्रुटि के लिए कृपया क्षमा , धन्यवाद
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