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बुद्धिवर्धक कहानियाँ - भाग - ९ पे आप सबका स्वागत है , भाग - ८ की कहानी तो आपने पढ़ी ही होगी , अगर नहीं तो यहाँ पे क्लिक करें ! तो आइये अब प्रस्थान करते हैं , आज की सुंदर एवम् प्रेरक कहानी की ओर - जिसका नाम है - ( "आत्मा को खोजो भाई !" )
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बारह यात्री थे। वे एक नगर से दूसरे नगर को जा रहे थे। आगे बढ़े तो एक नदी आ गई। कोई पुल नहीं , कोई नाव नहीं। पार तो पहुँचना ही है , परंतु कैसे ?
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बुद्धिवर्धक कहानियाँ - भाग - ९ पे आप सबका स्वागत है , भाग - ८ की कहानी तो आपने पढ़ी ही होगी , अगर नहीं तो यहाँ पे क्लिक करें ! तो आइये अब प्रस्थान करते हैं , आज की सुंदर एवम् प्रेरक कहानी की ओर - जिसका नाम है - ( "आत्मा को खोजो भाई !" )
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बारह यात्री थे। वे एक नगर से दूसरे नगर को जा रहे थे। आगे बढ़े तो एक नदी आ गई। कोई पुल नहीं , कोई नाव नहीं। पार तो पहुँचना ही है , परंतु कैसे ?
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उनमें से एक सयाना था। वह बोला - " घबराओ नहीं ! एक-दूसरे का हाथ थाम लो। मिलकर हम पार हो जाएँगे। "
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सबने एक-दूसरे के हाथ कसकर पकड़ लिये। सावधानी से नदी पार करके दूसरे किनारे जा पहुँचे। स्याना व्यक्ति बोला - " अब गिनती करके देख लो , कोई नदी में तो नहीं रह गया ? "
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दूसरा बोला - " सबसे बुद्धिमान तू है , अब तू ही गिन। "
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स्याना गिनने लगा - " एक , दो , तीन , चार , पाँच , छः , सात , आठ , नौ , दस , ग्यारह। " स्वयं को उसने गिना ही नहीं। चौंककर बोला - " हम तो ग्यारह हैं ! एक साथी कहाँ गया ? "
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दूसरे ने गिना तो अपने-आप को भूल गया। इस तरह तीसरे , चौथे और बारी-बारी से सभी ने ग्यारह ही गिने। रोने लगे कि एक साथी डूब गया।
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तभी एक यात्री आ गया। उसने उनके रोने का कारण पूछा।
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स्याने ने सारी बात कह बताई।
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यात्री ने उन्हें देखते हुए मन में गिना तो वे बारह थे। उसने कहा - " यदि मैं तुम्हारे बारहवे साथी को खोज दूँ , तो ? "
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वे बोले - " तब तो हम तुम्हें भगवान् मान लेंगे। "
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यात्री बोला - " तुम सब बैठ जाओ। मैं एक-एक को चपत मारूँगा। जिसे चपत लगे , वह क्रम से एक , दो , तीन गिनता जाए। "
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इस तरह यात्री चपत मारता गया और वे लोग एक से बारह तक गिनते गए। अंत में बोले - "तुम सचमुच भगवान् हो !"
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आपको इन यात्रियों पर हँसी आती है , परंतु हम स्वयं भी इसी मूर्खता के शिकार हैं। पाँच कर्मेन्द्रियाँ , पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और ग्यारहवें मन को तो हम पहचानते हैं , परंतु बारहवें आत्मा को हम भुला बैठे हैं। हम दुनिया-भर के बखेड़े करते हैं , किन्तु आत्मा के लिए कुछ नहीं करते। ग्यारह की तृप्ति में ही डूब गया है , तभी तो मनुष्य दुःखी और अशान्त है।
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~ कहानी लेखक - महात्मा आनन्द स्वामी ~
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बहुत सुंदर और प्रेरक कहानी.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : क्रूस के अनसुलझे सवाल
राजीव भाई धन्यवाद व स्वागत हैं !
हटाएंबहुत प्रेरक कहानी...
जवाब देंहटाएंआ. धन्यवाद व सदा ही स्वागत हैं !
हटाएंbahut achhi aur prerak kahani ....
जवाब देंहटाएंआ. धन्यवाद व स्वागत हैं !
हटाएंसार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंप्रेरक कहानी
आ. धन्यवाद व स्वागत हैं !
हटाएंएक कहानी बहुत ही नीतिपरक एवं विद्वतापूर्ण ! अति सुंदर !
जवाब देंहटाएंआ. धन्यवाद व सदः ही स्वागत है !
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आशीष भाई ... इस कहानी के माध्यम से आत्मा जो सा बातों का मूल है उसका महत्त्व समझा दिया ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और ज्ञानवर्धक कहानी ....
भाई जी धन्यवाद व स्वागत है !
हटाएंसार्थक बोध कथा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद व स्वागत हैं !
हटाएंवाह क्या बात है. बहुत खूब. सार्थक और प्रेरक कहानी
जवाब देंहटाएंस्मिता जी धन्यवाद व सदा ही स्वागत हैं !
हटाएंसार्थक एवम् प्रेरक कहानी....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद !
हटाएंबोधप्रद कहानी...
जवाब देंहटाएंस्वागत है व धन्यवाद !
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