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बुधवार, 21 मई 2014

बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ सत्संग का ऐसा असर ~ ) - { Inspiring Stories - part - 7 }

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बुद्धिवर्धक कहानियाँ - भाग - ७ पे आप सबका हार्दिक अभिनन्दन है , भाग - ६ की कहानी तो आपने पढ़ी ही होगी , अगर नहीं तो यहाँ पे क्लिक करें ! तो आइये अब चलते हैं आजकी आदर्श व प्रेरक कहानी की तरफ़ , जिसका नाम है ( ~ सत्संग का ऐसा असर ~ )
डाकुओं का एक बहुत बड़ा दल था। उनमें जो बड़ा व बूढ़ा डाकू था , वह सबसे कहता था कि ' भाइयों , जहाँ कथा व सत्संग होता हो , वहाँ पर कभी मत जाना , नहीं तो तुम्हारा सारा काम बंद हो जाएगा। और अगर कहीं जा रहे हो व बीच में कथा हो रही हो तो जोर से अपना-अपना कान दबा लेना , उसको सुनना बिलकुल नहीं। ' ऐसी शिक्षा डाकुओं को मिली हुई थी।
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एक दिन उनमें से एक डाकू कहीं जा रहा था। रास्ते में एक जगह सत्संग-प्रवचन हो रहा था। रास्ता वोही था क्योंकि उसको उधर ही जाना था। जब वह डाकू उधर से गुजरने लगा तो उसने जोर से अपने कान दबा लिये। तभी चलते हुए अचानक उसके पैर में एक काँटा लग गया। उसने एक हाथ से काँटा निकाला और फिर कान दबा कर चल पड़ा। काँटा निकालते समय उसको यह बात सुनायी दी कि देवता की छाया नहीं होती।
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एक दिन उन डाकुओं ने राजा के खजाने में डाका डाला। राजा के गुप्तचरों नें खोज की। एक गुप्तचर को उन डाकुओं पर शक हो गया। डाकू लोग देवी की पूजा किया करते थे। वह गुप्तचर देवी का रूप बनाकर उनके मंदिर में देवी की प्रतिमा के पास खड़ा हो गया। जब डाकू लोग वहाँ आये तो उसने कुपित होकर डाकुओं से कहा कि तुम लोगों ने इतना धन खा लिया , पर मेरी पूजा ही नहीं की ! मैं तुम सबको ख़त्म कर दूँगी।
ऐसा सुनकर वे सब डाकू डर गये और बोले कि क्षमा करो , हमसे भूल हो गई। हम जरूर पूजा करेंगे। अब वे धूप-दीप जलाकर देवी की आरती करने लगे। उनमें से जिस डाकू ने कथा की यह बात सुन रखी थी कि देवता की छाया नहीं होती !
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वह बोला - यह देवी नहीं है। देवी की छाया नहीं पड़ती , पर इसकी तो छाया पड़ रही है ! ऐसा सुनते ही डाकुओं ने देवी का रूप बनाये हुए उस गुप्तचर को पकड़ लिया और लगे मारने। वे बोले कि चोर तो तू है , हम कैसे हैं ? चोरी से तू यहाँ आया। भई वो गुप्तचर किसी तरह से वहाँ से भाग पाया। तभी बड़े डाकू ने उस डाकू से पूछा कि " क्यों रे तुझको ये बात कहाँ से मालूम चली ! " उसने डरते हुए उस बूढ़े डाकू से उस रास्ते की कथा वाला व्रतांत सुनाया " तभी वह बड़ा डाकू बोला - जिन्दगी में हम आज तक अपने मार्ग पर चलने से क्या पाए - सिवाय डर और बदनामी के आज इसने हमारी आँखे खोल दी , कथा व सत्संग की एक बात सुनने का ऐसा फर्क व फल , आज से हम सब ये प्रण लेते हैं कि सदैव अच्छा काम ही करेंगे ! यह कहकर उस बड़े व बूढ़े डाकू ने सबसे पहले अपना हथियार समर्पण किया व देखते ही देखते सारे डाकुओं ने भी अपने सारे हथियार समर्पण करके कभी भी दोबारा ऐसा काम न करने की शपथ ली !
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                      कहानी लेखक - स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
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मित्रों व प्रिय पाठकों - कृपया अपने विचार टिप्पणी के रूप में ज़रूर अवगत कराएं - जिससे हमें लेखन व प्रकाशन का हौसला मिलता रहे ! धन्यवाद !
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24 टिप्‍पणियां:

  1. ज्ञानवर्धक एवं प्रेरक कहानी !

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  2. बहुत सुन्दर और प्रेरक कहानी...

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  3. सत्संग का अपना ही महत्त्व है ... प्रेरक कहानी है ...

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  4. Thanks! Ashish Bhai bahut acchi jankari hai

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  5. आशीष जी आप अपना ब्लॉग ब्लॉगसेतु http://www.blogsetu.com/ ब्लॉग एग्रीगेटर के साथ जोडीये और संभव हो तो इसके प्रचार में भी सहयोग देने की कृपा करें

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  6. सत्संग की महिमा का पार नहीं।

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