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शनिवार, 25 अक्टूबर 2014

बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( तीन प्रकार के मनुष्य ) - { Inspiring Stories - part - 10 }

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बुद्धिवर्धक कहानियाँ - भाग १० - पे आप सबका हार्दिक स्वागत है , भाग - ९ की कहानी तो आपने पढ़ी ही होगी , अगर नहीं तो यहाँ पे क्लिक करें ! तो आइये अब प्रस्थान करतें हैं , आज की सुंदर एवं प्रेरक कहानी की ओर - जिसका नाम है - ( "तीन प्रकार के मनुष्य" )
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आजकल तीन प्रकार के मनुष्य पाए जाते हैं , तनिक उनकी बात सुनिए।
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अकबर बैठे थे अपनी राजसभा में। बड़े-बड़े ज्ञानी और विद्वान् थे उनके मंत्री। उनमें बीरबल भी थे। अकबर सबसे अधिक उनका सम्मान करते थे। इस बात से दूसरे दरबारी उनसे जलते थे।
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एकदिन बीरबल राजसभा में नहीं गए तो कुछ दरबारियों ने शिकायत की - "महाराज ! आप बीरबल का तो बहुत सम्मान करते हैं , हमारा उतना नहीं होता। बीरबल में ऐसी कौन-सी विशेषता है जो हममें नहीं है ?"
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महाराज अकबर ने देखा कि इन लोगों में ईर्ष्या जाग उठी है। वह बोले - "बीरबल हमारे सभी प्रश्नों का उत्तर देता है। क्या तुम भी एक प्रश्न का उत्तर दोगे ?"
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दरबारी बोले - "पूछिए महाराज !"

अकबर ने कहा - "यहाँ से या बाहर से , दो 'अबके' ले आओ , दो 'तबके' , और दो ऐसे लाओ जो न अबके हों न तबके।"
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दरबारियों ने सोचा - राजा शायद आज भाँग चढ़ा बैठा है , नहीं तो इस प्रश्न का क्या मतलब ?

तभी बीरबल आ गए। दरबारियों को जैसे साँप सूँघ गया था। सबको देखकर बीरबल ने पूछा - "महाराज ! ये सब चुप क्यों साधे हुए हैं ?"
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अकबर बोले -"ये लोग तुमसे ईर्ष्या करते हैं। कहते हैं कि तुम्हारी तरह ये भी मेरे हर सवाल का जवाब दे सकते हैं। मैंने इन्हें कहा कि दो अबके' लाओ , दो 'तबके' , और दो ऐसे हों जो न अबके हों न तबके। तभी से चुप हैं।"
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बीरबल ने कहा - "महाराज ! यह तो साधारण-सी बात है। मैं ला दूँगा ये सब-के-सब , परन्तु इसके लिए कल तक का समय देने की कृपा करें।"

महाराज ने उसकी बात मान ली।
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अगले दिन बीरबल गए यमुना-तट पर। वहाँ कितने ही राजा-महाराजाओं के तम्बू लगे थे। कुछ दूरी पर साधु-संत भी धूनी रमाए प्रभु-भजन में लीन थे। बीरबल ने दो राजाओं के पास जाकर कहा - "आपको अकबर बादशाह ने बुलाया है , मेरे साथ चलें।"
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इसके बाद उसने दो साधुओं से प्रार्थना की - "बादशाह अकबर आपके दर्शन करना चाहते हैं। मेरे साथ चलने की कृपा करें।"
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चारों को लेकर बीरबल चाँदनी-चौक पहुँचे। वहाँ से दो दुकानदारों को भी साथ ले लिया। पहुँच गए दरबार में।
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बादशाह ने पूछा - "क्यों बीरबल , मिल गया हमारे प्रश्न का उत्तर ?"

बीरबल बोले - "मैं अपने साथ ही लाया हूँ , महाराज !"

दरबारियों ने हैरानी से उन लोगों को देखकर सोचा - ये लोग बादशाह के सवाल का जवाब कैसे हुए ?
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बीरबल ने बताया - "महाराज ! ये दो राजा 'अब के' हैं। पिछले जन्म में इन्होंने तप किया , दान दिया , पुण्य-कर्म किए। उनका फल ये अब भोग रहे हैं , इसलिए 'अब के' हैं। ये दो साधु आज तप कर रहे हैं , लोक सेवा कर रहे हैं , प्रभु-भजन करते हुए कष्ट भोग रहे हैं। इन्हें सुख मिलेगा आगे चलकर। ये 'तब के' हैं।"

बादशाह ने दुकानदारों की ओर इशारा करके पूछा - "और ये ?"
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बीरबल ने बताया - "ये दुकानदार हैं। ये न पहले तप कर पाए , न अब करते हैं। इनके लिए न आज सुख है , न आगे होगा। ये पहले भी कम तोलते थे , आज भी कम तोलते हैं।"
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सो भाइयों ! अब सोच लो कि तुम अबके हो , तबके हो , या उनमें से हो जो न अबके हैं और न तबके। यदि तीसरे प्रकार के हो तो कृपया ऐसा न करो ! प्रभु-कृपा पाने का यत्न अवश्य करो !
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~ कहानी लेखक - महात्मा आनंद स्वामी ~
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मित्रों व प्रिय पाठकों - कृपया अपने विचार टिप्पणी के रूप में ज़रूर अवगत कराएं , जिससे हमें लेखन व प्रकाशन का हौसला मिलता रहे ! धन्यवाद !
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12 टिप्‍पणियां:

  1. भाई जी...मन खुश कर दिया...अब तो हमे भी तप करनी पड़ेगी।

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  2. आदरणीय आशीष जी! सादर नमन! सुन्दर कथा से परिचय कराया है आपने! धन्यवाद!
    धरती की गोद

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  3. सुन्दर कथा प्रस्तुति
    .दीपावली की शुभकामनायें!

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  4. आदरणीय आशीष जी बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ.
    अच्छी बुद्धिवर्धक कहानी है.

    हिंदी ब्लॉग

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